शैल चित्र : कहीं सुलझी तो कहीं अनसुलझी पहेली
बचपन में जब कभी हम इतिहास को जानने और समझने के लिए किताबों का सहारा लेते थे , तब हमें अपने पूर्वजों के संबंध में एक अनूठी जानकारी हमारे हाथ लगती थी , वो ये कि..... हमारे पूर्वजों को शैल चित्र गढ़ने में महारथ हासिल था। शैल चित्र @ सती अनुसुइया , चित्रकूट लेकिन उस उम्र के पड़ाव में हमारे लिए यह कल्पना करना या उसके बारे मे सोचना हमारी समझ के परे होता था। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि , ‘ इंसान वहीं तक कल्पना और सोच सकता है जहां तक उसने दुनिया देख रखी है , उससे परे संभव नहीं। ’ हम पढ़ते थे कि हमारे पूर्वज जिन गुफाओं में रहते थे उन गुफाओं कि भित्ति पर; साथ ही बड़ी चट्टानों पर चित्र या कोई संकेत अपने मनोरंजन या आपसी संवाद के लिये बड़ी शिद्दत के साथ उकेरते थे.... आज हम इन चित्रों को शैल चित्र से संबोधित करते हैं। प्रागैतिहासिक कालीन मुसव्विरी... शैल पर @ गोविन्द बल्लभ पन्त समाज विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद प्रागैतिहासिक कालीन मुसव्विरी... शैल पर @ गोविन्द बल्लभ पन्त समाज विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद हम अगर इन शैल चित्रों को पुरातत्त्ववेता की निगाहों