लोकतंत्र का महापर्व
भारत के पाँच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और पंजाब में आगामी दिनों विभिन्न चरणों में लोकतंत्र का महापर्व मनाया जायेगा। इस पर्व की तैयारी प्रशासन के द्वारा युद्ध स्तर पर ज़ारी है। साथ ही लोकतंत्र के इस महापर्व में राज्य के निवासियों द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग देश हित में करने के लिये उत्साह, मतदान जागरूकता कार्यक्रमों में साफ़ नज़र आ रहा है। भारत निर्वाचन आयोग तथा प्रशासन तंत्र विधानसभा चुनाव में मुकम्मल जनता
की भागीदारी के लिये रोज़ाना नये-नये तरीकों के द्वारा लोगों में चुनाव तथा
मतदान के प्रति जागरूकता अभियान चलाये जा रहे है।
मतदाता एक्सप्रेस @ चित्रकूट |
क्या ये सभी अनुप्रयोग कारगर साबित हो रहे है ? क्या ग्रामीण जनता मतदान की अहमियत समझ रही है ? क्या उन्हें अपने वोट का उद्देश्य मालूम है ? क्या जनता अपने क्षेत्र के उम्मीदवार की फ़ितरत से वाकिफ़ है ? इन सवालों के सम्बन्ध में भी प्रशासन के द्वारा जागरूकता अभियान चलाने की पूर्ण जोर आवश्यकता है।
आज़ादी के 7 दशक होने को हैं, परन्तु देश की सामाजिक परिस्थितियाँ औपनिवेशिक काल से भी ज्यादा बदहवास और बदहाल हो गयी है। अंग्रेज़ों ने " फूट डालो राज करो " की नीति के चलते भारत की सामाजिक संरचना की नींव को खोखला कर दिया था । आज़ादी के 7 दशक बाद भी यह नींव में कोई तब्दीली आती हुई नहीं दिखाई दे रही है। आज समाज और भी विभिन्न जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद, व्यवहारवाद और पार्टीवाद में बँटता जा रहा है। इसके लिए 7 दशक पहले भी आम नागरिक जिम्मेदार थे और आज भी वहीं अपने समाज की इस बदहाल स्थिति के लिये जिम्मेदार हैं।
आज़ादी के 7 दशक होने को हैं, परन्तु देश की सामाजिक परिस्थितियाँ औपनिवेशिक काल से भी ज्यादा बदहवास और बदहाल हो गयी है। अंग्रेज़ों ने " फूट डालो राज करो " की नीति के चलते भारत की सामाजिक संरचना की नींव को खोखला कर दिया था । आज़ादी के 7 दशक बाद भी यह नींव में कोई तब्दीली आती हुई नहीं दिखाई दे रही है। आज समाज और भी विभिन्न जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद, व्यवहारवाद और पार्टीवाद में बँटता जा रहा है। इसके लिए 7 दशक पहले भी आम नागरिक जिम्मेदार थे और आज भी वहीं अपने समाज की इस बदहाल स्थिति के लिये जिम्मेदार हैं।
हालांकि शहरी मतदाताओं के साथ ही ग्रामीण मतदाता अब प्रत्याशियों की फ़ितरत से बखूबी वाकिफ़ है और वो इनके बहकावे और धमकाने में नहीं आने वाले। यह बात सोलह आने सच है कि अब जागरूक जनता अपने मत का मूल्य बखूबी जानती है।
बहरहाल, समस्या यह है कि अपने देश और क्षेत्र विशेष के विकास के लिये अपना अमूल्य वोट किसे दें। इसके पूर्व लोकसभा के निर्वाचन के समय भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाताओं की मुश्किल थोड़ी आसान कर दी थी और वो ऐसे, अपनी वेबसाइट पर Know Your Candidate का एक पेज बनाकर। क्या भारत निर्वाचन आयोग फ़िर इस दिशा में कोई क़दम उठायेगा ? ये तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा।
इस विधानसभा चुनाव में जागरूक मतदाताओं को अपना अमूल्य मत ऐसे उम्मीदवार के पक्ष में देना होगा जो एक आदर्श राजनेता होने के साथ ही जिसमें आदर्श राजनीति के सर्व गुण भी हो। चूँकि ऐसे राजनेता ज़मीनी स्तर के होते है, इसकारण ये अपने निर्वाचन क्षेत्र की विशिष्टता तथा निवासियों की समस्याओं से बखूबी परिचित होते हैं। ऐसी विविध परिस्थितियों में ये क्रमशः उनका उचित उपयोग तथा उचित हल में इन्हें महारथ हासिल होती है। ऐसे में क्षेत्र के साथ देश का भी विकास होना लाजिमी है।
मतदाता एक्सप्रेस @ चित्रकूट |
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