अतिरंजीखेड़ा, उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले से 16 किमी• की दूरी पर मरथर–मिरहची मार्ग पर स्थित एक प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल है। गंगा की सहायक, काली नदी ( कालिंदी नदी ) के
तट पर स्थित यह पुरातात्विक स्थल अब
मात्र एक बीरान क्षेत्र ही रह गया है।
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काली नदी (कालिंदी नदी) का विहंगम नज़ारा |
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग बौद्ध स्थलों के साक्ष्यों को खोजते हुए सन् 630 ईसवी को यहाँ पहुँचा था। इतिहासकारों
की माने तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जनक सर अलेक्जेण्डर कनिंघम ने सन् 1865 ईसवी में इस स्थल
को पहली दफ़ा देखा था।
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Terracotta |
1962 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने यहाँ उत्खनन कराया। इसमें यहाँ से लोहा
पिघलाने की भट्ठियां, तांबे के बर्तन और मुद्रा, भाला, गेरुआ रंग के बर्तन मिले।
यही नहीं कुषाण, गुप्त कालीन मूर्तियां, तांबे के सिक्के,
पत्थर के टैग, देवी -देवताओं के चित्र, फूल-पत्तियां, भाले एवं ईंटों के टुकड़े
(बड़ी संख्या में) आदि शुंग, कुषाण और गुप्तकालीन पुरातात्विक अवशेषों की प्राप्ति हुई थी । ये
सभी पुरातात्विक अवशेष लखनऊ,
कोलकाता, दिल्ली, मथुरा के संग्रहालयों में आज
भी सुरक्षित रखे हुये हैं।
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अतिरंजीखेड़ा पर फ़ैले टेरकोटा के टुकड़े |
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सैलानियों की कलाकारी |
अतिरंजी खेड़ा का विस्तृत भू-भाग 3960 फुट लंबे और 1500 फुट चौड़े टीले में आज सिर्फ़ पुरातात्विक खण्डहर के छोटे- छोटे टुकड़े ही देखने को मिलते हैं, जो इतिहास को
जीवित रखे हुए हैं। यह टुकड़े टेराकोटा के हैं जो पूरे टीले में जहाँ तहाँ फैले हुए हैं। यहाँ पहले कभी राजा बेन का क़िला रहा और उससे पहले यहाँ आदिमानव रह चुके थे ।
अतिरंजी खेड़ा का इतिहास कहता है कि राजा बेन ने मुहम्मद गौरी को उसके
कन्नौज आक्रमण के समय परास्त किया था किन्तु अंत मे बदला लेकर गौरी ने राजा बेन के
अतिरंजीखेड़ा
स्थित
क़िले पर चढ़ाई करके मात दी थी। अतिरंजीखेड़ा के इस
युद्ध में राजा बेन के सैकड़ों सैनिकों को मौत के
घाट उतार दिया गया और राजा की हत्या कर क़िले पर गौरी ने अधिकार कर लिया और इस क़िले
को खंडित करा दिया।
इस युद्ध में मुहम्मद गौरी का राजगुरु उलेमा हजरत हुसेन भी
मारा गया। आज इसी स्थान पर उलेमा हजरत हुसेन की मज़ार है जिसकी आज कल
हिन्दू-मुस्लिम परंपरागत पूजा करते हैं । यह युद्ध की घटना को याद दिलाता है।
..... अतिरंजी खेड़ा के इस खून-खराबे भरे इतिहास के कारण इस स्थान को अतिरंजी खेड़ा
कहा जाता
है। जहां अति मतलब अत्यधिक और रंज... दुःख/शत्रुता !
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उलेमा हज़रत हुसेन की मज़ार |
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बौद्ध विहार |
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बौद्ध भिक्षु और मेरा सहयात्री अशोक सिंह |
अतिरंजी खेड़ा से कुछ क़दमों की दूरी पर एक बौद्ध विहार है। विहार के परिवेश में चार स्तूप बलुआ पत्थर से बने हुए आज भी अपनी मौजूदगी पेश कर रहे हैं। मान्यता ये है कि इन चारों स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक के द्वारा कराया गया था। यह चार स्तूप सम्राट अशोक के 84000 स्तूपों में से एक है।
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स्तूप
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धर्मचक्र |
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विहार का भोजन |
विहार में
रहने वाले भिक्षुओं से जब मैं रूबरू हुआ तब इस विहार के संबंध मे कुछ रोचक तथ्य
हाथ लगे... वो यह कि,,, यहाँ भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार के समय तीन माह इसी स्थान पर भिक्षाटन
करके गुज़ारे थे.... तभी से यहाँ एक परंपरा का प्रादुर्भाव हुआ .... यहाँ वर्ष के
आषाढ़ मास से अगले दो माह तक बौद्ध भिक्षुओं का जमावड़ा लगता है। इसके चलते यह आज
बौद्धों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल बन चुका है।
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विहार के अहाते पर बना मन्दिर |
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मन्दिर के गर्भगृह में स्तूप को ही शिवलिंग के रूप में पूजते हैं ग्रामीण |
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@अचलपुर |
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बौद्ध भिक्षु और साथ में लेखक जोगराज सिंह शाक्य |
अतिरंजी खेड़ा, अचलपुर, एटा के निवासी एवं लेखक जोगराज सिंह शाक्य से जब मुझे बौद्ध भिक्षुओं ने
मिलाया तब मैं अतिरंजी खेड़ा का
इतिहास और भी करीब से जान सका । अतिरंजी खेड़ा के कई
पुरातात्विक अवशेष इन्होंने अपने संग्रहालय में आज भी सहेज़ के रखे हुये हैं जो
इन्हें अतिरंजी खेड़ा की खुदाई के समय प्राप्त हुये। अतिरंजी खेड़ा आने
वाले सैलानियों के लिये लेखक जोगराज सिंह
शाक्य बड़ी विनम्रता से मिलते है और उन्हें अपने संग्रहालय से रूबरू ज़रूर कराते
हैं....... मेरा इनसे मिलने का अनुभव बेहद दिलचस्प रहा........ ये बहुत ही
मिलनसार फ़ितरत के हैं.... हाँ थोड़ा ऊंचा
सुनते हैं,,,,,… दो पीढ़ियाँ जो
देख रखी हैं ।
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पुरातात्विक अवशेष |
अतिरंजीखेड़ा की यह सैर बेहद दिलचस्प और यादगार रहेगी क्योंकि...... इसमें साथ रहा तीन महान बौद्ध भिक्षुओं और खोजी लेखक जोगराज सिंह शाक्य का। साथ ही इस सफ़र में बौद्ध भिक्षुओं के हाथ के भोजन का सौभाग्य मिला........!!!!!
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काली नदी के पुल की छांव में चरवाहे |
मुझे पूरा विश्वास है आपको मेरे साथ यात्रा करने में पिछली बार से ज़्यादा आनंद आया होगा और आप इतिहास के एक नये अध्याय से ज़रूर रूबरू हुये होंगे.... अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स पर ज़रूर दें..........और हाँ, अज़ीज़ दोस्तों ! हौसला अफजाई करना मत भूलियेगा.......क्योंकि..किसी को दवा काम आती है तो किसी को दुआ ....!!!!!!
।। शुक्रिया भारत ।।
Great writing.....
ReplyDeleteKing Benu maharaj is said to be the king of Ataranjikheda as the ancient King during the time of Lord Rama . King Benu also helped Lord Rama to defeat Ravana.
DeleteMe Ram Das from Amanpur. The king Benu of Ataranjikheda is less known to us. Indeed He was the great Truth worthy king. He do posses Paradmani due to his truthtorthynrss.
Deleteआपका का तहे दिल से शुक्रिया 👍
Deleteबढ़िया वर्णन ।
ReplyDeleteआपका तहे दिल से शुक्रिया
Deleteबहुत जबरदस्त और रोचक और नयी जगह की जानकारी
ReplyDeleteब्लॉग को तवज़्जो देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
DeleteKnowledgeable writing good job Sir Ji.👌
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब ....
Deleteआपकी खोजपरक निगाह काबिले तारीफ है|
ReplyDeleteखूब खूब आभार आपका 🙏
DeleteAaj phali Barr iski history ko itnae karib se Jana or m atranjikhera ghum k bi aya
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया 👍 शुक्रिया आपका ...
Deleteकाबिल-ए-तारीफ मित्र,
ReplyDeleteशुक्रिया यारा...👍
DeleteThank you so much 👍☺✌
ReplyDeletethank you so much
ReplyDelete😊⚓
DeleteGreat job Prashant. Keep exploring the beautiful countryside.
ReplyDeleteThank u so much..🙏
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Deleteसभी साक्ष्यों व प्रमाणों से सिद्ध होता है कि बुद्ध ने यहां प्रवास किया था राजा वेणु एक चक्रब्रद्धि बौद्ध राजा थे मुझे भी कयी बार यहां जाने का अवसर प्राप्त हुआ है मैंने यहां छोटा सा संग्रहालय भी देखा था जहां विभिन्न पुरातात्विक वस्तुओं के साथ साथ बौद्ध धम्म चक्र भी देखा था यह बहुत ही रोचक एवं बौद्धमय भारत की तस्वीर है जिसे कभी आक्रान्ताओं ने शायद नष्ट किया होगा।
ReplyDeleteसरकार को चाहिए इसका और उत्खनन कराये साथ ही इस अनमोल धरोहर संरक्षित रख चहुंमुखी विकास कराये ।
शुक्रिया 👍
DeleteSari ji etah athaiya ke chodeswar mandir ka bhi ithihas khagale yha bhi kuchh purane place h
ReplyDeleteSir i want your contact number regarding this information of this Story or u call me on my. No 8193942092
ReplyDeleteYour work is inspirable
ReplyDeleteमित्र क्यू ना इसका नाम बेनखेरा राजाजीके नाम पर रखा जाए