मड़फा @चित्रकूट : ऐतिहासिक - रोमांचक पहाड़ी
मड़फा की पहाड़ी चोटी |
यायावरी रोज़ नये अनुभवों को जेहन में समा लेने की एक दिलचस्प मनोप्रवृत्ति है। साथ ही रोमांच से भर देने वाली एक अद्भुत कला भी। यायावर जब और भी रोमांचित एवं खुशी से फूले नहीं समाता जब उसका सरोकार एक अंजान इलाके से होता है।
दोस्तों... मैं आपको अपने इस यात्रा वृत्तांत में कुदरत द्वारा निर्मित एक ऐसी ख़ूबसूरत पहाड़ी से रूबरू कराने जा रहा हूँ, जिसका सरोकार ऐतिहासिकता तथा धार्मिकता दोनों से ही है। यह ख़ूबसूरत पहाड़ी विंध्याचल पर्वत श्रेणियों का एक भाग है, जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में है। उत्तर प्रदेश में यह पहाड़ी चित्रकूट ज़िले के... मड़फा गाँव में है।
वक़्त था सुबह-ए-चित्रकूट का और दिन था क्रिसमस का.....
मेरे जेहन में एक अंजान गाँव मड़फा का जिक्र था। यह गाँव मेरे गृह ज़िले चित्रकूट में था इस कारण मैं इस गाँव के नाम से पहले से ही परिचित था। गाँव के नाम के सिवाय इस गाँव के सम्बन्ध में, मेरे पास और कोई जानकारी नहीं थी और यहाँ तक कि गूगल गुरु ने भी जवाब दे दिया था।
फिर...... एक अंजान इलाके को अपने अल्फ़ाज़ों में गढ़ने के लिए निकल पड़ा। एक अंजान सैर पर। इस सफ़र में, मैं एकल नहीं था, मेरे साथ बेहद ही जिज्ञासु और घुमक्कड़ी मेरा अजीज दोस्त दीपक भी था। उसका मेरी इस यात्रा में सहयात्री के रूप में एक अहम किरदार रहा। अहम किरदार क्यों रहा इसका जिक्र मैं इस यात्रा संस्मरण में आगे करूँगा।
चूँकि यह सैर मैंने यात्रा ब्लॉग को जेहन में रखकर की थी इस कारण मैंने अपना यह सफ़र धार्मिक नगरी चित्रकूट-धाम कर्वी रेलवे स्टेशन से प्रारंभ किया, क्योंकि यह रेलवे स्टेशन भारत के विभिन्न छोटे-बड़े रेलवे स्टेशनों से भली-भाँति जुड़ा हुआ है। चित्रकूट-धाम कर्वी रेलवे स्टेशन से मड़फा गाँव की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है।
स्टेशन से मड़फा जाने के लिए पहले भरतकूप तक का सफ़र तय करना होता है। रेलवे स्टेशन से ऑटो रिक्शा करके भरतकूप पहुँचा जा सकता है, जो स्टेशन से 16 किलोमीटर की दूरी पर है। बहरहाल भरतकूप में रेलवे स्टेशन भी है। यह स्टेशन भारत के विभिन्न राज्यों एवं खासकर उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न छोटे-बड़े नगरों एवं गाँवों के स्टेशनों से बखूबी जुड़ा हुआ है। भरतकूप से मड़फा की दूरी महज़ 14 किलोमीटर की ही है, जो ऑटो रिक्शा के द्वारा सुगम सड़क मार्ग से होते हुए तय की जाती है।
स्टेशन से मड़फा जाने के लिए पहले भरतकूप तक का सफ़र तय करना होता है। रेलवे स्टेशन से ऑटो रिक्शा करके भरतकूप पहुँचा जा सकता है, जो स्टेशन से 16 किलोमीटर की दूरी पर है। बहरहाल भरतकूप में रेलवे स्टेशन भी है। यह स्टेशन भारत के विभिन्न राज्यों एवं खासकर उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न छोटे-बड़े नगरों एवं गाँवों के स्टेशनों से बखूबी जुड़ा हुआ है। भरतकूप से मड़फा की दूरी महज़ 14 किलोमीटर की ही है, जो ऑटो रिक्शा के द्वारा सुगम सड़क मार्ग से होते हुए तय की जाती है।
बहरहाल मैंने स्टेशन से 30 किलोमीटर का सफ़र बाइक से तय किया जो बेहद खुशनुमा तथा सादगी भरा रहा। मैंने राह में मिलने वाले ग्रामीणों तथा गगनचुम्बी पर्वत श्रृंखलाओं से भी सरोकार किया। साथ ही बेहतरीन मंजर को कैमरे के फ्रेम में समाहित भी किया।
मैं और मेरा सहयात्री दोनों ही अब पहुँच चुके थे... मड़फा। समय 1:35 था और सूरज देवता हमारे सर के ऊपर से गुजर ही रहे थे... यहाँ के ग्रामीणों से रूबरू होने पर पता चला कि मुझे मेरा आज का मुकाम मड़फा इस गगनचुम्बी पहाड़ी की चोटी को फ़तह करने पर मिलेगा। मड़फा के ग्रामीणों से पहाड़ी के संबंध में मिली एक और जानकारी ने मेरे तोते ही उड़ा दिये थे, जब उन्होंने हमें बताया कि चोटी तक पहुंचने का कोई सड़क मार्ग ही नहीं है सिर्फ़ लगभग 1.5 किलोमीटर की पगडण्डी पर चलकर ही चोटी फ़तह की जा सकती हैं। यह पगडण्डी जगह- जगह धूमिल भी हो जाती है।
मैं खुद से बात करने लगा...
मतलब ट्रेकिंग.... यह तो बेहद ख़तरनाक और जोख़िम भरा सफ़र होगा लेकिन यायावरी के रोमांच से रूबरू होने का यह एक बेहतर मौका है। और मौके बार बार नहीं मिलते ....
... भारत में एक कहावत है मौके पर चौका मारना। फिर मैं निकल पड़ा... चौके का खेल पहाड़ी पर पहला क़दम रखते ही खेल दिया था अब वक़्त हो चला था खेले गये चौके को सीमा रेखा के पार देखने का।
मतलब ट्रेकिंग.... यह तो बेहद ख़तरनाक और जोख़िम भरा सफ़र होगा लेकिन यायावरी के रोमांच से रूबरू होने का यह एक बेहतर मौका है। और मौके बार बार नहीं मिलते ....
... भारत में एक कहावत है मौके पर चौका मारना। फिर मैं निकल पड़ा... चौके का खेल पहाड़ी पर पहला क़दम रखते ही खेल दिया था अब वक़्त हो चला था खेले गये चौके को सीमा रेखा के पार देखने का।
मड़फा की यह पहाड़ी मुख्यतः आग्नेय और अवसादी दोनों ही चट्टानों के सममिश्रण का मिला-जुला रुप है। जिसमें मुख्यतः ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर हैं। पहाड़ी पर चढ़ने के लिए कुछ दूरी तक अवशेषी सीढ़ियाँ थी। कुछ दूरी चढ़ने के बाद अवशेषी सीढ़ियाँ भी समाप्त हो गयी। अब आगे का सफ़र पगडण्डी का था। पगडण्डी पर क़दम आगे की ओर और बढ़ते... की समस्या मुँह बाय मेरे सामने थी। समस्या यह थी कि, आगे पगडण्डी अब धूमिल होने लगी थी। अब तक हम काफी चढ़ायी चढ़ चुके थे और शरीर थक चुका था, हम सर्दियों के मौसम में भी पसीने से सराबोर हो चुके थे। इस कारण मैं और मेरा सहयात्री कुछ देर के लिए काली ग्रेनाइट की एक विशाल चट्टान पर ठहर गये ।
नींद में भी जागृत रहने वाला मेरा मस्तिष्क पुनः सतर्क हो गया और आगे का सफ़र कैसे तय हो ये सोचने लगा। पुनः खुद से बात करने का दौर शुरू हो गया था... क्योंकि मैं अब तक ट्रेकिंग की A B C D सीख ही रहा था, तो समस्या से दो चार हाथ होना लाजमी ही था।
मैं ट्रेकिंग के अब तक के अनुभव से यह सीख चुका था कि, “ट्रेकिंग का सबसे अभिन्न अंग यह है कि, निगाहें पगडण्डी के साथ ही साथ मंजिल पर भी टिकी होनी चाहिये...”
अनुभव से निकला यह निष्कर्ष मेरी धूमिल होती पगडण्डी की समस्या का... रामबाण हल था। हम लगभग 10 मिनट के ठहराव के बाद पुनः पहाड़ी पर फ़तह हासिल करने चल पड़े। इस बार मैं ऐसे चला...कि मानों मंजिल मुझे आवाज़ देकर बुला रही हो और मैं भी उसकी आवाज़ की तरंगों के पथ को अनुसरण करता आगे बढ़ता जा रहा था। अब तक मैं पहाड़ी की आधी से ज्यादा चढ़ाई को अपने क़दमों से रौंद चुका था। पहाड़ी की चढ़ाई कदम दर कदम बढ़ती ही जा रही थी और कदम भारी होते जा रहे थे। जेहन में एक कहावत बार बार प्रेरक का काम कर रही थी " हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा...........
..... मैं मंजिल को जेहन में रखता हुआ पगडण्डी पर चलता जा रहा था, साथ ही मेरा सहयात्री भी। अब पहाड़ी की इस ऊँचाई से खाई की गहराई को देखना रोमांच से भरपूर्ण अनुभव था। मैं अबतक ट्रेकिंग के 30 मिनट के रोमांच से रूबरू हो चुका था। इसी बीच मैंने कुदरत की कई विविधताओं और साथ ही रोमांचित कर देने वाले मंजर को कैमरे के फ्रेम में समाहित कर लिया था। अब ट्रेकिंग के 10 मिनट के बाद मुझे खुला आसमां दबे पाँव दिखाई देने लगा था।
मैं खुद से बात करने लगा...... हाँ, मैं अब हूँ मड़फा की उस गगनचुम्बी पहाड़ी की चोटी पर जो थोड़ी देर पहले ही अपनी ऊंचाई पर इतरा रही थी .... मैंने चोटी पर फ़तह हासिल कर ली थी । मैंने कर दिखाया.........
जब चोटी से मैं मुखातिब हुआ, तब चोटी का मंजर कुछ अधूरा सा महसूस हो रहा था । चोटी पर हमारे अलावा और कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था। चोटी पर राष्ट्रीय महत्त्व का एक संरक्षित स्मारक, प्राचीन मंदिर, उजड़ी झोपड़ियां और कुछ वन्य जीव मात्र ही, इस चोटी को जीवित बनाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। मैंने जब चोटी की पड़ताल करना प्रारम्भ किया तो सब से पहले मुझे संरक्षित स्मारक के अवशेषों से रूबरू होने का अवसर मिला।
यह संरक्षित स्मारक पुरातात्विक महत्त्व के साथ ही ऐतिहासिक महत्त्व को संजोय हुए था । इस कारण इस संरक्षित संस्मारक को संस्मारक, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अन्तर्गत राष्ट्रीय महत्त्व का होना घोषित किया गया है।
यह संरक्षित स्मारक पुरातात्विक महत्त्व के साथ ही ऐतिहासिक महत्त्व को संजोय हुए था । इस कारण इस संरक्षित संस्मारक को संस्मारक, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अन्तर्गत राष्ट्रीय महत्त्व का होना घोषित किया गया है।
मुख्य द्वार की वास्तुकला |
यह स्मारक ऊँचे और विशाल मुख्य द्वार की वास्तुकला को संजोए हुए है। स्मारक पर मिले साक्ष्यों के अध्ययन से ज्ञातव्य होता है कि... यह मुख्य द्वार बुंदेली राजवंश के राजा द्वारा मंदिर की सुरक्षा तथा मंदिर के प्रमुख द्वार को जेहन में रखकर निर्माण कराया गया होगा। यह मुख्य द्वार लाल बलुआ पत्थर की मोटी अभेद्य भित्ति से निर्मित है। द्वार के सामने के हिस्से पर की गयी कारीगरी बेहद ख़ूबसूरत है। जिसपर बेल-बूटों को लाल बलुआ पत्थर पर बेमिसाल तरीके से गढ़ा गया है।
ऐसी ही कारीगरी के नमूनें मुख्य द्वार के अन्दर के विशाल चौड़े स्तम्भों तथा इसकी छत पर देखने को मिलती है। मेरे लिए अब यह अनुमान लगाना बेहद सहज हो गया था कि बुन्देली कला एवं संस्कृति समसामयिक में कितनी शिखर पर रही होगी।
चूँकि यह मुख्य द्वार मंदिर की ओर खुलता था इस कारण मैं प्राचीन मंदिर की ओर आगे कदम बढ़ाने लगा। पहाड़ी की चोटी पर कुछ क़दम की दूरी पर मुझे एक प्राचीन मंदिर मिला और मेरे जिज्ञासु मन को तब शांति मिली जब मैंने मंदिर की बाहरी दीवार पर गढ़े गये शब्दों को पढ़ा.... जिस पर लिखा था पंचमुखी महादेव...
मैंने खुद से पुनः बात की ... यह पंचमुखी भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है।
बेमिसाल नक्काशी |
मुख्य द्वार की स्थापत्यकला |
चूँकि यह मुख्य द्वार मंदिर की ओर खुलता था इस कारण मैं प्राचीन मंदिर की ओर आगे कदम बढ़ाने लगा। पहाड़ी की चोटी पर कुछ क़दम की दूरी पर मुझे एक प्राचीन मंदिर मिला और मेरे जिज्ञासु मन को तब शांति मिली जब मैंने मंदिर की बाहरी दीवार पर गढ़े गये शब्दों को पढ़ा.... जिस पर लिखा था पंचमुखी महादेव...
मैंने खुद से पुनः बात की ... यह पंचमुखी भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है।
पंचमुखी महादेव |
बहरहाल मेरा इससे पहले कभी ऐसे कोई भगवान शिव का पर्याय और पंचमुखी शिव की मूर्ति से कभी सरोकार नहीं हुआ था । इस कारणवश मन की जिज्ञासा चरमोत्कर्ष पर थी। मंदिर के मण्डप में प्रवेश कर कुछ क़दम पर मंदिर का गर्भगृह आँखों के सामने आया।
गर्भगृह के केन्द्र में काले पत्थर से निर्मित की गयी पंचमुखी भगवान शिव की विशाल प्रतिमा स्थापित है, जो गर्भगृह की कलात्मक विविधता में चार चांद लगाती है। बकौल यह प्रतिमा बुन्देली राजवंशीय कालीन रही होगी इस कारण मूर्ति पर की गयी शिल्पकारी उम्दा है। मंदिर की स्थापत्यकला को बाहर से निहारने के बाद मेरी नज़र पहाड़ी की चोटी पर स्थित 2-3 झोपड़ियों पर पड़ी जो अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लगी थी और साथ ही अपने ज़िन्दा रहने का प्रमाण भी दे रही थी। शायद यह झोपड़ियाँ बंज़ारों या बाशिंदों का रैन-बसेरा होगा।
पड़ताल के बाद अब वक़्त था “शौक-ए-दीदार है तो नज़र पैदा कर” पर अमल करने
का...
चोटी से तली का विहंगम दृश्य |
चूँकि मैं अब भी पहाड़ी की चोटी पर था… जहाँ से जमीन के विशालकाय पेड़ चींटी की भाँति दृश्य थे और मेरे चारों ओर खुला आसमां था... तब यह रोमांचित मंजर देख मेरे जेहन में यह पंक्तियाँ थी... " ये हसीं वादियाँ, ये खुला आसमां..."
मेरा और मेरे सहयात्री का यहाँ का सफ़र पूरा होने को था और शाम भी होने को थी। मैंने यहाँ बिताये पलों को हमेशा जेहन में रखने के लिये कुछ देर अपने घुमक्कड़ी दोस्त से गुफ्तगू की ...
मोबाइल से गानें बजाये और साथ ही उसके लफ़्ज़ों को गुंगुनाकर गाने का लुफ़्त लिया। जिसके लफ़्ज़ थे ...
Bird Eye View |
मोबाइल से गानें बजाये और साथ ही उसके लफ़्ज़ों को गुंगुनाकर गाने का लुफ़्त लिया। जिसके लफ़्ज़ थे ...
"आसमां में उड़ता परिंदा
पर फैलाये
खुली हवा में
अब वक़्त हो चला था पहाड़ी की छोटी से रूक्सत लेने का ।
मैं जिस पगडण्डी पर चलकर चोटी पर पहुँचा था, उसी पगडण्डी पर खुद के पद चिह्नों को खोजता हुआ और एहतियात बर्तते हुए, मैं सुरक्षित नीचे भी आया और साथ ही मेरा सहयात्री भी। अब शाम का समय हो चुका था और परिंदों के घर वापस लौटने का भी
....
मेरे क्रिसमस के दिन की सैर यहीं नहीं खत्म हुई। इसके बाद मैं मड़फा गाँव से 12 किलोमीटर की बाइकिंग करके अपनी सैर के अगले पड़ाव पर पहुँचा। यह पड़ाव था भरतकूप का प्रसिद्ध पौराणिक भरत -मंदिर और यहाँ स्थित भगवान भरत का कुंआ जिसे भरतकूप भी कहते हैं।
भरतकूप का जिक्र मैं अगले यात्रा संस्मरण पर करूँगा।
कैमरे के फ्रेम में समाहित कुछ बेहतरीन मंजर...
लुत्फ उठाइये.........
भरतकूप का जिक्र मैं अगले यात्रा संस्मरण पर करूँगा।
कैमरे के फ्रेम में समाहित कुछ बेहतरीन मंजर...
लुत्फ उठाइये.........
मड़फा गाँव से पहाड़ी की चोटी |
अरवा की वास्तुकला | |
काला ग्रेटाइट |
लाल ग्रेनाइट |
!! शुक्रिया भारत !!
Awesome
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteशानदार
ReplyDeleteशुक्रिया भाई जी
DeleteFrom one traveller to another, it's great to see what you have experienced so far. Keep travelling keep exploring.
ReplyDeleteआपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ...
Deleteसभी कुछ का समावेश करता आपका लेख ग्रामीण इलाको के छुपे हुए हिस्सों को दर्शाता बहुत खूब
ReplyDeleteआपका बहुत - बहुत शुक्रिया , दोस्त !
Deleteरोचक विवरण। अगली कड़ी का इन्तजार है।
ReplyDeleteब्लॉग को तवज्जो देने के लिये आपका बहुत - बहुत शुक्रिया...
Deleteअगली कड़ी शीघ्र ही यूँ ही, बने रहिये सैरनामा के साथ
वाह, आपके ब्लॉग पर पहली बार आया । पहली बार में ही मजा आ गया । बढ़िया रोचक शैली में खोजी घुमक्कड़ी पोस्ट लिखी है ।
ReplyDeleteआपके यह लफ़्ज़ बहुत ही अहमियत रखते हैं मेरे लिये...
Deleteहौसला अफजाई के लिये बहुत बहुत शुक्रिया आपका !!!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया। शानदार यात्रा।
ReplyDeleteआपका तहे दिल से बहुत - बहुत शुक्रिया !!!!
Deleteबहुत खूब ! अभी कल परसों यानि 15 अप्रैल को ही चित्रकूट होकर आया और मरफा जाने का मन था लेकिन समय की कमी की वजह से नहीं जा पाया ! इस जगह को आपकी नजरों से देखना अच्छा लगा मित्रवर ! और ये बहुत बढ़िया रहा कि आपका गाँव भी उधर ही है लेकिन आपने चित्रकूट की पहाड़ियों को "गगनचुम्बी " बताकर थोड़ा अतिश्योक्ति दिखा दी ! पहली बार इधर आया हूँ और कहूंगा कि आपके ब्लॉग में रोचकता है !! लिखते रहिये
ReplyDeleteमड़फा को मेरी नज़रों से देखने और हौसला अफजाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...
Deleteआपका सुझाव हमेशा ज़ेहन में रहेगा ... शुक्रिया !!!
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ReplyDeleteThank you 😊 I will do
DeleteBhut aachha bt aaap Aabhi vha Ki bhut si adbhut rhsy tk ni phuche plz punh bhrman kro
ReplyDeleteThank you... On my next journey I will explore👍💐
Deleteपूरे इंडिया में ऐसा शिव जी का पंचमुखी मंदिर नहीं है देखने के बाद रोवा खड़ा हो जाता है बाबा मर्फा शिव जी को मै बहुत खुस्नाशिब हू कि ऐसा दर्शन मैंने किया
ReplyDeleteहर हर महादेव
Thank you 💐
Delete